UPSSSC PET 24 Aug 2021 Shift 2 Paper

Show Para  Hide Para 
Question Numbers: 76-80
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उस 'पर आधारित प्रश्नों के उत्तर चुनिए.
विधाता-रचित इस सृष्टि का सिरमौर है मनुष्य। उसकी कारीगरी का सर्वोत्तम नमूना | इस मानव को ब्रह्माण्ड का लघु रूप मानकर भारतीय दार्शनिकों ने 'यत्‌ 'पिएडे तत ब्रह्माण्ड की कल्पना की थी। उनकी यह कल्पना मात्र कल्पना नहीं थी, प्रत्युत यथार्थ भी थी क्योंकि मानव- मन में जो विचारणा के रूप में घटित होता है, उसी का कृति रूप ही तो सृष्टि है। मन तो मन, मानव का शरीर भी अप्रतिम है। देखने में इससे भव्य, आकर्षक एवं लावण्यमय रूप सृष्टि में अन्यत्र कहाँ है ? अद्भुत एवं अद्वितीय है 'मानव-सौन्दर्य ! साहित्यकारों ने इसके रूप-सौन्दर्य के वर्णन के लिए कितने ही अप्रस्तुतों का विधान किया है और इस सौन्दर्य-राशि से सभी को आप्यायित करने के लिए अनेक काव्य सृष्टियाँ रच डाली हैं।
साहित्यशास्त्रियों ने भी इसी मानव की भावनाओं का विवेचन करते हुए अनेक रसों का निरूपण किया है। परन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से विचार किया जाए तो मानव-शरीर को एक जटिल यन्त्र से उपमित किया जा सकता है | जिस प्रकार यन्त्र के एक पुर्जे में दोष आ जाने पर सारा यन्त्र गड़बड़ा जाता है, बेकार हो जाता है उसी प्रकार मानव- शरीर के विभिन्न अवयवों में से यदि कोई एक अवयव भी बिगड़ जाता है तो उसका प्रभाव सारे शरीर पर पड़ता है। इतना ही नहीं, गुर्दे जैसे कोमल एवं नाजुक हिस्से के खराब हो जाने से यह गतिशील वपुयन्त्र एकाएक अवरुद्ध हो सकता है, व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। एक अंग के विकृत होने पर सार शरीर दण्डित हो, वह कालकवलित हो जाए - यह विचारणीय है।
यदि किसी यन्त्र के पुर्जे को बदलकर उसके स्थान पर नया पुर्जा लगाकर यन्त्र को पूर्ववत सुचारु एवं व्यवस्थित रूप से क्रियाशील बनाया जा सकता है तो शरीर के विकृत अंग के स्थान पर नव्य निरामय अंग लगाकर शरीर को स्वस्थ एवं सामान्य क्यों नहीं बनाया जा सकता? शल्य-चिकित्सकों ने इस दायित्वपूर्ण चुनौती को स्वीकार किया तथा निरन्तर अध्यवसाय पूर्णसाधना के अनन्तर अंग-प्रत्यारोपण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। अंग- प्रत्यारोपण का उद्देश्य है कि मनुष्य दीर्घायु प्राप्त कर सके। यहाँ यह ध्यातव्य है कि मानव-शरीर हर किसी के अंग को उसी प्रकार स्वीकार नहीं करता, जिस प्रकार हर किसी का रक्त उसे स्वीकार्य नहीं होता। रोगी को रक्त देने से पूर्व रक्त-वर्ग का परीक्षण अत्यावश्यक है, तो अंग-प्रत्यारोपण से पूर्व ऊतक-परीक्षण अनिवार्य है। आज का शल्य-चिकित्सक गुर्दे, यकृत, आँत, फेफड़े और हृदय का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक कर रहा है। साधन-सम्पन्न चिकित्सालयों में मस्तिष्क के अतिरिक्त शरीर के प्रायः सभी अंगों का प्रत्यारोपण सम्भव हो गया है।
© examsnet.com
Question : 78
Total: 100
Go to Question: