लगभग 6वीं शताब्दी के आस-पास मध्य भारत में कलचुरियों का अभ्युदय हुआ। कलचुरियों ने आरंभ में महिष्मति (महेश्वर, जिला खरगौन: मध्य प्रदेश ) को सत्ता का केन्द्र बनाया एवं कालांतर में कलचुरियों की शाखा जबलपुर के समीप त्रिपुरी नामक क्षेत्र में कोकल्ल द्वारा स्थापित की गई। छत्तीसगढ़ में कलचुरियों का प्रादुर्भाव 9वीं सदी में हुआ। प्रारंभ में इनका केन्द्र रतनपुर था बाद में रायपुर एक नवीन केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। मराठों के आगमन के पूर्व तक लगभग संपूर्ण छत्तीसगढ़ में कलचुरियों का प्रभुत्व बना रहा। रतनपुर में कलचुरी वंश की नीव 9वीं सदी में कोकल्ल के पुत्र शंकरगण (राजधानी तुम्माण ) ने रखी। उसके बाद वंश के प्रमुख राजाओं का क्रम निम्नानुसार है- कलिंगराज-कमलराज (1020−45 ई. )⇒ रत्नदेव I(1045−65 ई. )⇒ पृथ्वीदेव प्रथम (1065−95 ई. )⇒ जाज्वल्यदेव प्रथम (1095-1120 ई.) ⇒ रत्न देव II (1120-1135 ई.) ⇒ पृथ्वी देव द्वितीय (1135−65 ई. )⇒ प्रतापमल्ल (1165−1178 ई. )......⇒ रघुनाथ सिंह (अतिम शासक -1741 ई. तक शासन किया ) कलचुरी वंश के अंतिम शासक रघुनाथ सिंह को 1741 में मराठा सरदार भास्कर पंत ने परास्त करके छत्तीसगढ़ पर मराठा प्रभुत्व स्थापित किया।