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Question Numbers: 76-80
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
मानव के पास समस्त जगत को देखने-परखने के दो नज़रिए हैं - एक आशावादी, दूसरा निराशावादी। इसे सकारात्मक और नकारात्मक दृष्टि भी कहते हैं। जो आशावादी या सकारात्मकता के मार्ग पर चलते हैं, वे सदैव आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं, तथा निराशावादी या नकारात्मक दृष्टि वाले दु:ख के सागर में डूबे रहते हैं और सदा अपने आपको प्रस्थापित करने के लिए तर्क किया करते हैं। वे भूल जाते हैं कि तर्क और कुतर्क से ज्ञान का नाश होता है एवं जीवन में विकृति उत्पन्न होती है। आशावादी तर्क नहीं करते, फलस्वरुप वह आन्तरिक आनन्द की प्रतीति करते हैं। वह मानते हैं कि आत्मिक आनंद, कभी प्रहार या काटने की प्रक्रिया में नहीं है। इसीलिए जगत में सदा आशावाद ही पनपा है, उसने ही महान व्यक्तियों का सृजन किया है। निराशावाद या नकारात्मकता की नींव पर कभी किसी जीवन प्रासाद का निर्माण नहीं हुआ।
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
मानव के पास समस्त जगत को देखने-परखने के दो नज़रिए हैं - एक आशावादी, दूसरा निराशावादी। इसे सकारात्मक और नकारात्मक दृष्टि भी कहते हैं। जो आशावादी या सकारात्मकता के मार्ग पर चलते हैं, वे सदैव आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं, तथा निराशावादी या नकारात्मक दृष्टि वाले दु:ख के सागर में डूबे रहते हैं और सदा अपने आपको प्रस्थापित करने के लिए तर्क किया करते हैं। वे भूल जाते हैं कि तर्क और कुतर्क से ज्ञान का नाश होता है एवं जीवन में विकृति उत्पन्न होती है। आशावादी तर्क नहीं करते, फलस्वरुप वह आन्तरिक आनन्द की प्रतीति करते हैं। वह मानते हैं कि आत्मिक आनंद, कभी प्रहार या काटने की प्रक्रिया में नहीं है। इसीलिए जगत में सदा आशावाद ही पनपा है, उसने ही महान व्यक्तियों का सृजन किया है। निराशावाद या नकारात्मकता की नींव पर कभी किसी जीवन प्रासाद का निर्माण नहीं हुआ।
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