REET 2022 Level 2 Math and Science Paper

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Question Numbers: 81-90
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
भय की इस वासना का परिहार क्रमशः होता चलता है। ज्यों-ज्यों नाना रूपों से अभ्यस्त होता है त्यों-त्यों उसकी धड़क खुलती जाती है। इस प्रकार अपने ज्ञान-बल, हृदय-बल और शरीर-बल की वृद्धि के साथ वह दुःख की छाया मानो हटाता चलता है। समस्त मनुष्य-जाति की सभ्यता के विकास का यही क्रम रहा है। भूतों का भय तो अब बहुत कुछ छूट गया है, पशुओं की बाधा भी मनुष्य के लिए प्राय: नहीं रह गई है; पर मनुष्य के लिए मनुष्य का भय बना हुआ है। इस भय के छूटने के लक्षण भी नहीं दिखाई देते। अब मनुष्य के दुःख का कारण मनुष्य ही है। सभ्यता से अंतर केवल इतना पड़ा है कि दुःख-दान की विधियाँ बहुत गूढ़ और जटिल हो गई हैं। उसका क्षोभकारक रूप बहुत-से आवरणों के भीतर ढक गया है। अब इस बात की आशंका तो नहीं रहती कि कोई जबरदस्ती आकर हमारे घर, खेत, बाग-बगीचे, रुपये-पैसे छीन न ले, पर इस बात का खटका रहता है कि कोई नकली दस्तावेजों, झूठे गवाहों और कानूनी बहसों के बल से इन वस्तुओं से वंचित न कर दे। दोनों बातों का परिणाम एक ही है। सभ्यता की वर्तमान स्थिति में एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से वैसा भय तो नहीं रहा जैसा पहले रहा करता था, पर एक जाति को दूसरी जाति से, एक देश को दूसरे देश से, भय के स्थायी कारण प्रतिष्ठित हो गए हैं। सबल और सबल देशों के बीच अर्थ-संघर्ष की, सबल और निर्बल देशों के बीच अर्थ-शोषण की प्रक्रिया अनवरत चल रही है; एक क्षण का विराम नहीं है। इस सार्वभौम वणिग्वृत्ति से उसका अनर्थ कभी न होता यदि क्षात्रवृत्ति उसके लक्ष्य से अपना लक्ष्य अलग रखती। पर इस युग में दोनों का विलक्षण सहयोग हो गया है। वर्तमान अर्थोन्माद को शासन के भीतर रखने के लिए क्षात्रधर्म के उच्च और पवित्र आदर्श को लेकर क्षात्रसंघ की प्रतिष्ठा आवश्यक है।
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