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Question Numbers: 17-19
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए :-
भारतीय साहित्य शास्त्र पर आनंदवाद का गहरा असर है। काव्यानंद को 'ब्रह्मानंद सहोदर' कहा गया है। रसात्मक वाक्य को ही काव्य कहा गया है। और संस्कृत साहित्य की समीक्षा के प्रचलित सभी मानदंडों-रस, रीति, अलंकार, वक्रोक्ति और ध्वनि में से भारतीय मनीषा ने रस को ही सर्वाधिक ऊंचा स्थान दिया है। आनंदवाद शैव दर्शन का शब्द है। इसका मूल रूप उपनिषदों में दिखायी देता है। तैत्तिरीयोपनिषद में लिखा है कि, "रसो वै सः रस ह्येवायं लबध्वानंदी भवति। एष ह्येवानंदति।" अर्थात् रस ही ब्रह्मा है। इस रस को पाकर पुरुष आनंदित हो जाता है। यह रस सबको आनंदित करता है। बृहदारण्यक उपनिषद में कहा गया है कि इस आनंद के अंश मात्र के आश्रय से ही सभी प्राणी जीवित रहते हैं। शंकराचार्य ने भी 'सौदर्य-लहरी' में "चिदानंदकारं शिव युवदि भावेन विभृषे" कहकर शिव को चिदानंद रूप बताया है।
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए :-
भारतीय साहित्य शास्त्र पर आनंदवाद का गहरा असर है। काव्यानंद को 'ब्रह्मानंद सहोदर' कहा गया है। रसात्मक वाक्य को ही काव्य कहा गया है। और संस्कृत साहित्य की समीक्षा के प्रचलित सभी मानदंडों-रस, रीति, अलंकार, वक्रोक्ति और ध्वनि में से भारतीय मनीषा ने रस को ही सर्वाधिक ऊंचा स्थान दिया है। आनंदवाद शैव दर्शन का शब्द है। इसका मूल रूप उपनिषदों में दिखायी देता है। तैत्तिरीयोपनिषद में लिखा है कि, "रसो वै सः रस ह्येवायं लबध्वानंदी भवति। एष ह्येवानंदति।" अर्थात् रस ही ब्रह्मा है। इस रस को पाकर पुरुष आनंदित हो जाता है। यह रस सबको आनंदित करता है। बृहदारण्यक उपनिषद में कहा गया है कि इस आनंद के अंश मात्र के आश्रय से ही सभी प्राणी जीवित रहते हैं। शंकराचार्य ने भी 'सौदर्य-लहरी' में "चिदानंदकारं शिव युवदि भावेन विभृषे" कहकर शिव को चिदानंद रूप बताया है।
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