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Question Numbers: 81-85
निर्देश: अधोलिखित गधांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या के उत्तर इस गधांश के आधार पर दीजिए:
लोभ चाहे जिस वस्तु का हो जब वह बहुत बढ़ जाता है तब उस वस्तु की प्राप्ति, सानिध्य या उपभोग से जी नहीं भरता l मनुष्य चाहता है कि वह बार-बार मिले या बराबर मिलता रहे l धन का लोभ जब रोग होकर चित्त में घर कर लेता है, तब प्राप्ति होने पर भी प्राप्ति की इच्छा बराबर बनी रहती है जिससे मनुष्य सदा आतुर और प्राप्ति के आनन्द से विमुख रहता है l जितना नहीं है उतने के पीछे जितना है उतने से प्रसन्न होने का उसे कभी अवसर ही नहीं मिलता l उसका सारा अन्तःकरण सदा अभावमय रहता है l उसके लिए जो है वह भी नहीं है l असन्तोष अभाव-कल्पना से उत्त्पन्न दुःख है; अत: जिस किसी में यह अभाव-कल्पना स्वाभाविक हो जाती है सुख से उसका नाता सब दिन के लिए टूट जाता है l न किसी को देखकर वह प्रसन्न होता है और न उसे देखकर कोई प्रसन्न होता है l इसी से सन्तोष सात्विक जीवन का अंग बताया गया है l
निर्देश: अधोलिखित गधांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या के उत्तर इस गधांश के आधार पर दीजिए:
लोभ चाहे जिस वस्तु का हो जब वह बहुत बढ़ जाता है तब उस वस्तु की प्राप्ति, सानिध्य या उपभोग से जी नहीं भरता l मनुष्य चाहता है कि वह बार-बार मिले या बराबर मिलता रहे l धन का लोभ जब रोग होकर चित्त में घर कर लेता है, तब प्राप्ति होने पर भी प्राप्ति की इच्छा बराबर बनी रहती है जिससे मनुष्य सदा आतुर और प्राप्ति के आनन्द से विमुख रहता है l जितना नहीं है उतने के पीछे जितना है उतने से प्रसन्न होने का उसे कभी अवसर ही नहीं मिलता l उसका सारा अन्तःकरण सदा अभावमय रहता है l उसके लिए जो है वह भी नहीं है l असन्तोष अभाव-कल्पना से उत्त्पन्न दुःख है; अत: जिस किसी में यह अभाव-कल्पना स्वाभाविक हो जाती है सुख से उसका नाता सब दिन के लिए टूट जाता है l न किसी को देखकर वह प्रसन्न होता है और न उसे देखकर कोई प्रसन्न होता है l इसी से सन्तोष सात्विक जीवन का अंग बताया गया है l
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