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Question Numbers: 87-90
निर्देश : निम्नांकित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
आत्मभाषा में ही आत्मज्ञान या स्वज्ञान का विकास संभव है। आत्मभाषा आत्ममुक्ति का साधन है। आत्ममुक्ति का तात्पर्य सोचने, समझने, कहने और सुनने के स्वराज की प्राप्ति से है और यह अपनी भाषा में ही संभव है। भारतीय समाज में विकास की पहली जरूरत है कि सोचने, समझने और विभिन्न कार्यों को करने के लिए औपनिवेशिक परिवेश से मुक्त मनो-मस्तिष्क का विकास, जिसे हमने अंग्रेजी उपनिवेशवाद के प्रभाव के कारण खो दिया है। इसे पुराने ढर्रे पर लाना ही होगा। हालांकि वापसी की यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। इसे संभव बनाने के लिए हमें आत्म विस्मृति के दंश से निकलना होगा। औपनिवेशिकता की गुलामी में जकड़े देश आमतौर पर आत्मविस्मृति के शिकार रहे हैं। उनकी आजादी की लड़ाई 'आत्म विस्मृति' से मुक्ति का लड़ाई रही है। राष्ट्रीय अस्मिता के लिए संघर्ष की लड़ाई रही है।
असल में होता यह है कि हमें नीतियाँ उनके लिए बनानी हैं और उस समाज का विकास करना है जो अंग्रेजी नहीं जानता। वह तबका अपनी भाषा में सोचता है और वही उसकी आकांक्षाओं की भाषा है। ऐसी जनता के लिए नीतियाँ बनाने वाले और सोचने-समझने वालों की भाषा अभी भी अंग्रेजी है। ऐसे में विकास एवं जरूरतमंद लोगों के बीच एक खाई चौड़ी हो जाती है। हमें आवश्यकता इस बात की है कि हम जनता की आकांक्षा की भाषा के साथ स्वयं को जोड़ें।
निर्देश : निम्नांकित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
आत्मभाषा में ही आत्मज्ञान या स्वज्ञान का विकास संभव है। आत्मभाषा आत्ममुक्ति का साधन है। आत्ममुक्ति का तात्पर्य सोचने, समझने, कहने और सुनने के स्वराज की प्राप्ति से है और यह अपनी भाषा में ही संभव है। भारतीय समाज में विकास की पहली जरूरत है कि सोचने, समझने और विभिन्न कार्यों को करने के लिए औपनिवेशिक परिवेश से मुक्त मनो-मस्तिष्क का विकास, जिसे हमने अंग्रेजी उपनिवेशवाद के प्रभाव के कारण खो दिया है। इसे पुराने ढर्रे पर लाना ही होगा। हालांकि वापसी की यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। इसे संभव बनाने के लिए हमें आत्म विस्मृति के दंश से निकलना होगा। औपनिवेशिकता की गुलामी में जकड़े देश आमतौर पर आत्मविस्मृति के शिकार रहे हैं। उनकी आजादी की लड़ाई 'आत्म विस्मृति' से मुक्ति का लड़ाई रही है। राष्ट्रीय अस्मिता के लिए संघर्ष की लड़ाई रही है।
असल में होता यह है कि हमें नीतियाँ उनके लिए बनानी हैं और उस समाज का विकास करना है जो अंग्रेजी नहीं जानता। वह तबका अपनी भाषा में सोचता है और वही उसकी आकांक्षाओं की भाषा है। ऐसी जनता के लिए नीतियाँ बनाने वाले और सोचने-समझने वालों की भाषा अभी भी अंग्रेजी है। ऐसे में विकास एवं जरूरतमंद लोगों के बीच एक खाई चौड़ी हो जाती है। हमें आवश्यकता इस बात की है कि हम जनता की आकांक्षा की भाषा के साथ स्वयं को जोड़ें।
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