कृष्णा सोबती की इस प्रसिद्ध कहानी का प्रकाशन 1948 में हुआ था।
इस कहानी के माध्यम से इन्होंने भारत विभाजन के समय उभरने वाली परेशानियों का बड़ा मार्मिक वर्णन किया है।
अन्य विकल्प:
महरुनिसा परवेज़ - आदम और हव्वा, टहनियों पर धूप, गलत पुरुष, फाल्गुनी, अंतिम पढ़ाई, सोने का बेसर, अयोध्या से वापसी, एक और सैलाब, कोई नहीं, कानी बाट, ढहता कुतुबमीनार, रिश्ते, अम्मा, समर आदि।
हरीशंकर परसाई - हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव आदि।
पद्मा सचदेव – मेरा गुल्ला कहाँ है, ईद, मुक्त, बूंद-बावड़ी, हमवतन, आधा कुआं आदि।