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Question Numbers: 55-57
निर्देशः निम्नलिखित गद्यांश को पढ़े तथा प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रदूषण न केवल किसी एक राष्ट्र की अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक भयानक समस्या है। प्रदूषण का अर्थ है - वातावरण में किसी तत्व का असंतुलित मात्रा में विद्यमान होना । प्रदूषण विज्ञान की देन है, रोगों का निमंत्रण है और प्राणियों की अकाल मृत्यु का संकेत है। प्रदूषण इस मनोहर-धरा को नरक तुल्य बनाने पर तुला है। प्रदूषण ने सर्वप्रथम पर्यावरण को दूषित कर दिया है। पर्यावरण का जीवन-जगत के स्वास्थ्य एवं कार्य-कुशलता से गहरा संबंध है। यदि पर्यावरण शुद्ध है तो मानव का मन एवं तन शुद्ध, स्वस्थ एवं प्रफुल्लित रहता है। मनुष्य की कार्य-कुशलता बनी रहती है। पर्यावरण को पावन बनाने में प्रकृति का विशेष हाथ है। प्रकृति का संतुलन बिगड़ा नहीं कि पर्यावरण दूषित हुआ नहीं। पर्यावरण के दूषित होते ही जीव-जगत रोग-ग्रस्त हो जाता है।
प्रदूषण मुख्यतः दो प्रकार का होता है - सामाजिक प्रदूषण और प्राकृतिक प्रदूषण। सामाजिक प्रदूषण समाज के लोगों के दूषित विचार होने से उत्पन्न होता है। धार्मिक प्रदूषण और नैतिक प्रदूषण सामाजिक प्रदूषण के ही रूप हैं। प्राकृतिक प्रदूषण प्रकृति के विभिन्न घटकों में संतुलन बिगड़ने से होता है। उदाहरण के लिए जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भू प्रदूषण और ताप प्रदूषण। प्रदूषण चाहे सामाजिक हो या प्राकृतिक नितांत चिंतनीय है।
निर्देशः निम्नलिखित गद्यांश को पढ़े तथा प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रदूषण न केवल किसी एक राष्ट्र की अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक भयानक समस्या है। प्रदूषण का अर्थ है - वातावरण में किसी तत्व का असंतुलित मात्रा में विद्यमान होना । प्रदूषण विज्ञान की देन है, रोगों का निमंत्रण है और प्राणियों की अकाल मृत्यु का संकेत है। प्रदूषण इस मनोहर-धरा को नरक तुल्य बनाने पर तुला है। प्रदूषण ने सर्वप्रथम पर्यावरण को दूषित कर दिया है। पर्यावरण का जीवन-जगत के स्वास्थ्य एवं कार्य-कुशलता से गहरा संबंध है। यदि पर्यावरण शुद्ध है तो मानव का मन एवं तन शुद्ध, स्वस्थ एवं प्रफुल्लित रहता है। मनुष्य की कार्य-कुशलता बनी रहती है। पर्यावरण को पावन बनाने में प्रकृति का विशेष हाथ है। प्रकृति का संतुलन बिगड़ा नहीं कि पर्यावरण दूषित हुआ नहीं। पर्यावरण के दूषित होते ही जीव-जगत रोग-ग्रस्त हो जाता है।
प्रदूषण मुख्यतः दो प्रकार का होता है - सामाजिक प्रदूषण और प्राकृतिक प्रदूषण। सामाजिक प्रदूषण समाज के लोगों के दूषित विचार होने से उत्पन्न होता है। धार्मिक प्रदूषण और नैतिक प्रदूषण सामाजिक प्रदूषण के ही रूप हैं। प्राकृतिक प्रदूषण प्रकृति के विभिन्न घटकों में संतुलन बिगड़ने से होता है। उदाहरण के लिए जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भू प्रदूषण और ताप प्रदूषण। प्रदूषण चाहे सामाजिक हो या प्राकृतिक नितांत चिंतनीय है।
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