अलाउद्दीन खिलजी ने राजनीति को धर्म से कभी प्रभावित नहीं होने दिया। वह निरकुंश राजतंत्र में विश्वास करता था, उसने एक नया धर्म चलाना चाहा परंतु उलेमाओं के विरोध के कारण इस विचार को छोड़ दिया। अलाउद्दीन खिलजी ने 'खलीफा के नायब की उपाधि ग्रहण की। अमीर खुसरों ने अपने ग्रंथ 'खजाइनुल फुतूह' में अलाउद्दीन को ' युग का विजेता', 'विश्व का सुल्तान', ' जनता का चरवाहा' जैसी उपाधियों से विभूषित किया है।