इतिहासकार 'विन्सेंट स्मिथ' ने समुद्रग्रुप्त की वीरता पर मुग्ध होकर उसे 'भारतीय नेपोलियन' कहना पसंद किया। समुद्रगुप्त' चंद्रगुप्त-I (350-375 ई.) के पश्चात् गद्दी पर बैठा। वह लिच्छवि राजकुमारी कुमार देवी से उत्पन्न हुआ था। इसके विजयों के बारे में 'हरिषेण' द्वारा रचित 'प्रयाग प्रशास्ति' में पर्याप्त अंकन दिखता है। समुद्रगुप्त ने कई उपाधियाँ, जैसे- 'सर्वराजोच्छेता', अप्रतिरथ, अश्वमेघ पराक्रम, व्याघ्रपराक्रम आदि धारण की। उसने कई प्रकार की मुद्राएँ जारी की, जैसे-गरूड़ प्रकार, वीणावादन प्रकार, धनुर्धारी प्रकार, व्याघ्रहनन प्रकार आदि। उसके अपने सिक्के पर 'यूप' की आकृति खुदवाई। समुद्रगुप्त महान विजेता के साथ-साथ कवि, संगीतज्ञ एवं विद्या का संरक्षक था, उसे 'कवि राज' की उपाधि प्रदान की गई है। उसने महान बौद्ध भिझु 'वसुबन्धु' को संरक्षण दिया था।