गुप्त वंश का प्रारंभिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त लोग कुषाणों के सांमत थे। गुप्तों के आदि पुरुष का नाम श्रीगुप्त था, उसका उत्तराधिकारी व पुत्र घटोत्कच था। परन्तु गुप्त वंशावली में पहला शासक चंद्रगुप्त प्रथम (319- 334 ई.) (उपाधिमहाराजाधिराज ) का उल्लेख है। यह प्रतापी राजा था तथा इसने ही अपने सिंहासनारोहण के अवसर पर 319 ई. में नवीन संवत् (गुप्त संवत्) की स्थापना की थी। इसके बाद इस वंश के प्रतापी राजा क्रमश:-समुद्रगुप्त (334- 380 ई.), चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) (380-412 ई.) कुमारगुप्त प्रथम (413-455 ई.) तथा स्कन्दगुप्त (455-467 ई.) थे। गुप्त शासनकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल कहा जाता है। केन्द्रीय शासन का जो स्वरूप मौर्य युग में देखने को मिलता है वह गुप्त युग से ही विकेन्द्रीकृत होने लगा। समुद्र -गुप्त ( भारत का नेपोलियन) द्वारा अधीनस्थ राजाओं, सामंतो के प्रति अपनायी गयी नीति ही सामंतवाद (विकेन्द्रीकरण ) के उदय के लिए जिम्मेदार थी। केन्द्रीय प्रशासन अनेक भागों में विभक्त था। यहाँ मंत्रियों (मंत्रिन/ सचिव) के पद वंशानुगत होते थे, तथा पंडितों पुरोहितों को उपहार स्वरूप भूमिदान की परम्परा भी प्रचलित थी एवं इस भूमि ( दान ) से कर भी नहीं लिया जाता था। यद्यपि गुप्त शासनकाल में दास प्रथा भी विद्यमान थी। तथापि इस काल में व्यापार के हास के लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं।