प्राचीन भारत में मूर्तिकला की तीन शैली प्रसिद्ध था। (1) गंधार मूर्तिकला शैली (2) मथुरा मूर्तिकला शैली (3) अमरावती ( आंध्र प्रदेशः दक्षिण भारत ) गंधार शैली पर यूनानी और रोमन प्रभाव परिलक्षित होता है जबकि मथुरा शैली में देशी शैली का प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट है। गांधार शैली (निचली काबुल घाटी और पेशावर के चारों और उत्तरी सिंध: तत्कालीन उत्तर-पश्चिम भारत ) और मथुरा शैली (मध्य भारत+उत्तर- भारत ) जो कि कुषाण राजाओं के समय प्रस्फुटित हुई। दरअसल दोनो ही कला शैलियों में बुद्ध की मूर्तियाँ बनाई गई और बौद्ध विषयों का निरूपण किया गया तथा गांधार कला के अंतर्गत बुद्ध तथा बोधिसत्वों की बहुसंख्यक मूतिर्यों का निर्माण हुआ। गांधार शैली की उत्पति का स्रोत एशिया माइनर तथा हैलेनिस्टिक कला थी। गांधार शैली में भारतीय विषयों को यूनानी ढंग से व्यक्त किया गया है। इसका विषय बौद्ध होने के कारण इसे यूनानी-बौद्ध कला के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन भारतीय चित्रकला का वास्तविक प्रतिनिधित्व अजन्ता गुफाओं में बने चित्र करते हैं। अजन्ता में कुल 29 गुफाएं है। भौगोलिक दृष्टि से भारत के अन्य क्षेत्रों की तरह ही कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्राचीन भारतीय चित्रकला परम्परा का संशोधित रूप पहाड़ी शैली के रूप में विकसित हुआ। इस शैली में राजस्थानी मुगल तथा स्थानीय लोक तत्त्व का समावेश दिखायी पड़ता है। इस शैली की उप शैलियाँ बूंदी शैली, बसौली शैली, गुलेर शैली, कांगड़ा शैली, जम्बू शैली तथा चम्बा शैली आदि बहुत प्रसिद्ध है। सिंधु घाटी सभ्यता में धूसर मृदभाण्ड ( बर्तन-कटका ) चित्रित के साथ-साथ अंलकृत भी हुआ करते थे।