विभिन्न संवैधानिक विशेषज्ञों ने संविधान की प्रस्तावना के बारे में निम्न शब्द कहे हैं- 1. के. एम. मुंशी ने प्रस्तावना को 'हमारे संप्रभु, प्रजातांत्रिक गणतंत्र की जन्म कुण्डली' की संज्ञा दी है। 2. अर्नेस्ट बार्कर ने इसे 'संविधान की कुंज्जिका' कहा है। 3. ठाकुरदास भार्गव ने इसे 'संविधान की आत्मा' कहा है। 4. कांग्रेस ने 1955 के अवाडी सत्र ( चेन्नई) में भारतीय राज्य के लछ्य के रूप में 'समाज का समाजवादी स्वरूप' पदों' को स्वीकार किया है। नोट- 42 वें संविधान संशोधन (1976) के तहत संविधान की प्रस्तावना में 'पंथनिरपेक्ष', 'समाजवादी' तथा 'अखण्डता' जोड़ कर प्रस्तावना में अंतर्निहित उद्देश्य को सिर्फ स्पष्ट करने का काम किया है।