परमाणवीय इंधन ऐसा पदार्थ होता है, जिसके द्वारा नाभिकीय रिएक्टर में ऊष्मा (ऊर्जा) उत्सर्जित कर टर्बाइन को चलाया जाता है, जिससे विद्युत उत्पादन होता है। नाभिकीय विखण्डन द्वारा ऊष्मा उत्पन्न होती है। नाभिकीय ऊर्जा के लिए भारी और अस्थाई नाभिकीय परमाणुओं का उपयोग किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में एक चक्रीय अभिक्रिया होती है, जो इस तंत्र को चलायमान रखती है। भारी और अस्थाई नाभिक (परमाणु) पर धीमें वेग से न्यूट्रॉन का प्रहार किया जाता है जिससे पेरेन्ट परमाणु ( नाभिक), दो छोटे-छोटे नाभिकों में विखंडित हो जाता है तथा कुछ ऊष्मा और कुछ न्यूट्रॉन भी उत्सर्जित करता है, ये न्यूट्रॉन ( 3 और अधिक बाद में दूसरे नाभिकों से टकराते हैं और यही प्रक्रिया चलती रहती है। हालांकि अगर ऊष्मा से ऊर्जा या विद्युत उत्पन्न करना है, तो इस प्रक्रिया को नियंत्रित करना पड़ता है अर्थात् प्रत्येक नाभिक के विखंडन के बाद केवल एक न्यूट्रॉन को छोड़कर सारे अन्य न्यूट्रॉन को नियंत्रित कर लिया जाता है, जिससे यह प्रक्रिया नियंत्रित होकर ऊष्मा और विद्युत उत्सर्जन करे, परन्तु अगर यही प्रक्रिया अनियंत्रित तरीके से होने दी जाए, तो इसी प्रक्रिया से परमाणु बमों का निर्माण होता है। नाभिकीय ईंधन के रूप में उपयोग होने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण तत्त्व ( नाभिक) निम्न है- यूरेनियम-235/238, थोरियम, प्लूटोनियम आदि। जबकि सीसा (लेड: pb ) नाधिकीय इंधन नहीं है, क्योंकि इसका नाभिक स्थायी होता है। यूरेनियम से इंधन बनाने के दौरान अंतिम स्थायी उत्पाद्य सीसा ही बनता है।