अद्वैतवाद या अद्वैत वेदांत सनातन दर्शन वेदांत के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक है। इसके अनुसार जीव और ब्रह्या की भिन्नता का कारण माया है, जिसे अविद्या भी कहते हैं अर्थात् ज्ञान द्वारा ब्रह्या या मोक्ष को पाया जा सकता है। इस दर्शन के संस्थापक आदि शंकराचार्य ( 7-8 वीं सदी-दक्षिण भारतीय) ( या शंकराचार्य वे गुरु वेर गुरु गौड़पादाचार्य है) है। अद्वैतवाद ( एकतावाद/दो न होना) के अनुयायी मानते हैं, कि उपनिषदों में इसके सिद्धांतों की पूरी अभिव्यक्ति है और यह वेदांत सूत्रों के द्वारा व्यवस्थित है। जहाँ तक इसके उपलब्ध पाठ का प्रश्न है, इसका ऐतिहासिक आरंभ मांडूक्य उपनिषद पर छंद रूप में लिखित टीका मांडूक्य कारिका के लेखक गौड़पाद से जुड़ा हुआ है। विशिष्टाद्वैत दर्शन के संस्थापक रामानुज माने जाते हैं। जिसमें मुक्ति का मार्ग भक्ति (विष्णु/राम/कृष्ण) को बताया गया है।