स्तूप का शाब्दिक अर्थ ' थूहा' या 'ढेर' होता है। यह मूलत: मृत व्यक्ति के समाधि से संबंधित वस्तु का एक रूप है, जिसमें मृत्तिका निर्मित शरीर/शव या अवशेषों को गाड़ा जाता था। सर्वप्रथम स्तूप शब्द का प्रयोग विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में हुआ है, जो भारतीय साहित्य का सबसे बड़ा ग्रंथ है। स्तूप प्रथा, बौद्धों ने अपनाई एवं महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अस्थि अवशेषों पर 8 स्तूपों का निर्माण हुआ, बाद में अन्य बौद्ध आचार्यों एवं महात्मा बुद्ध द्वारा प्रयोग में लायी हुई सामाग्रियों के अवशेषों पर स्तूपों का निर्माण किया गया।