लगभग 6वीं शताब्दी के आस-पास मध्य भारत में कलचुरियों का उद्भव हुआ। कलचुरियों ने आरंभ में माहिष्मती ( महेश्वर जिला खरगौन; मध्य प्रदेश) को सत्ता का केन्द्र बनाया एवं कालांतर में कलचुरियों की शाखा जबलपुर के समीप त्रिपुरी नामक क्षेत्र में कोकल्ल द्वारा स्थापित की गई। छत्तीसगढ़ में कलचुरियों का प्रादुर्भाव 9वीं सदी में हुआ। प्रारंभ में इनका केन्द्र रतनपुर था, बाद में रायपुर एक नवीन केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। मराठों के आगमन के पूर्व तक (1758 ई.) लगभग सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में कलचुरियों का प्रभुत्व बना रहा। रतनपुर के कलचुरी वंश की नींव 9वीं सदी के उत्तरार्थ में कोकल्ल के पुत्र शंकरगण ने वाण वंशीय शासक विक्रमादित्य प्रथम को परास्त कर पाली क्षेत्र ( जिला-बिलासपुर) पर कब्जा किया और छत्तीसगढ़ में कलचुरी वंश की नींव रखी। तुम्माण इनकी आंरभिक राजधानी थी। कलचुरी वंश का अंतिम शासक रघुनाथ सिंह था, जिसे मराठा सरदार भास्कर पंत ने परास्त कर 1741 ई. में मराठा प्रभुत्व स्थापित किया। रायपुर के कलचुरी वंश (लहुरी शाखा का संस्थापक केशवदेव था।