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खेल की कक्षा शुरू हुई तो एक दुबली-पतली लड़की शिक्षक से ओलम्पिक रिकॉड्स के बारे में सवाल पूछने लगे। इस पर कक्षा में सभी छात्र हँस पड़े। चार साल की उम्र में ही उसे पोलियो हो गया था। शिक्षक ने भी व्यंग्य किया, 'तुम खेलों के बारे में जानकर क्या करोगी? तुम तो ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती, फिर ओलम्पिक से तुम्हारा क्या मतलब? तुम्हें कौन-सा खेलों में भाग लेना है जो यह सब जानना चाहती हो।
उदास होकर लड़की चुपचाप बैठ गई। सारी क्लास उस पर देर तक हँसती रही। घर जाकर उसनें माँ से पूछा, 'क्या मैं दुनिया की सबसे तेज धावक बन सकती हूँ? उसकी माँ ने उसे प्रेरित किया और कहा, 'तुम कुछ भी कर सकती हो। इस संसार में नामुमकिन कुछ भी नहीं है।
अगले दिन जब खेल पीरियड में उसे बाकी बच्चों से अलग बिठाया गया, तो उसे कुछ सोचकर बैसाखियाँ सँभाली और दृढ़ निश्चय के साथ बोली, 'सर, याद रखिएगा, अगर लगन सच्ची और इरादे बुलन्द हों, तो सब कुछ सम्भव है।' सभी ने इसे भी मजाक में लिया और उसकी बात पर ठहाका लगाया।
अब वह लड़की तेज चलने के अभ्यास में जुट गई, वह कोच की सलाह पर अमल करने लगी, अच्छी और पौष्टिक खुराक लेने लगी। कुछ दिनों में उसने अच्छी तरह चलना, फिर दौड़ना सीख लिया। उसके बाद वह छोटी-मोटी दौड़ में हिस्सा लेने लगी। अब कई लोग उसकी मदद के लिए आगे आने लगे। वे उसका उत्साह बढ़ाते। उसके हौसले बुलन्द होने लगे। उसने 1960 के ओलम्पिक में 100 मीटर, 200 मीटर और4 times 100 रिले में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। ओलम्पिक में इतिहास रचने वाली वह बालिका थी अमेरिका की प्रसिद्ध धाविका विल्मा रूडोल्फ।
भाग III | भाषा I [हिन्दी]
निर्देश (प्र.सं. 91-99 तक) निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए। खेल की कक्षा शुरू हुई तो एक दुबली-पतली लड़की शिक्षक से ओलम्पिक रिकॉड्स के बारे में सवाल पूछने लगे। इस पर कक्षा में सभी छात्र हँस पड़े। चार साल की उम्र में ही उसे पोलियो हो गया था। शिक्षक ने भी व्यंग्य किया, 'तुम खेलों के बारे में जानकर क्या करोगी? तुम तो ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती, फिर ओलम्पिक से तुम्हारा क्या मतलब? तुम्हें कौन-सा खेलों में भाग लेना है जो यह सब जानना चाहती हो।
उदास होकर लड़की चुपचाप बैठ गई। सारी क्लास उस पर देर तक हँसती रही। घर जाकर उसनें माँ से पूछा, 'क्या मैं दुनिया की सबसे तेज धावक बन सकती हूँ? उसकी माँ ने उसे प्रेरित किया और कहा, 'तुम कुछ भी कर सकती हो। इस संसार में नामुमकिन कुछ भी नहीं है।
अगले दिन जब खेल पीरियड में उसे बाकी बच्चों से अलग बिठाया गया, तो उसे कुछ सोचकर बैसाखियाँ सँभाली और दृढ़ निश्चय के साथ बोली, 'सर, याद रखिएगा, अगर लगन सच्ची और इरादे बुलन्द हों, तो सब कुछ सम्भव है।' सभी ने इसे भी मजाक में लिया और उसकी बात पर ठहाका लगाया।
अब वह लड़की तेज चलने के अभ्यास में जुट गई, वह कोच की सलाह पर अमल करने लगी, अच्छी और पौष्टिक खुराक लेने लगी। कुछ दिनों में उसने अच्छी तरह चलना, फिर दौड़ना सीख लिया। उसके बाद वह छोटी-मोटी दौड़ में हिस्सा लेने लगी। अब कई लोग उसकी मदद के लिए आगे आने लगे। वे उसका उत्साह बढ़ाते। उसके हौसले बुलन्द होने लगे। उसने 1960 के ओलम्पिक में 100 मीटर, 200 मीटर और
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