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Question Numbers: 129-135
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
मनुष्य ही प्रकृति के विनाश का कारण बनता जा रहा है। प्रकृति ने मनुष्य का ही नहीं, अपने सभी प्राणियों को सुख और संतोषपूर्वक जीवन बिताने के सभी साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराए हैं। अन्य जीव आज भी प्रकृति से आजभर के लिए साधन पाना चाहते हैं, जबकि मनुष्य आज ही जाने कब तक के लिए साधन आज पाना चाहता है। उसे भले ही सोने के लिए दो गज ज़मीन ज़रूरी हो मगर वह फ़र्लांगों में फैले बंगले का निर्माण करता है। भले ही इसके लिए कितने ही पेड़ क्यों न काटने पड़ें। भले ही इससे प्रकृति के अनंत जीव बेआसरा क्यों न होते हों। भले ही प्रकृति प्रदूषित होती हो, मगर वह यहाँ से वहाँ अन्य प्राणियों की भाँति पाँव-पाँव नहीं, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों में ही जाएगा। उसे इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है कि आने वाली पीढियाँ कहाँ रहेंगी, प्रकृति से कुछ पा सकेंगी या नहीं। वह तो आज ही अपनी विलासिता के लिए, अपनी सनक के लिए, अपनी फ़िजूल खर्ची की आदत के वशीभूत हो प्रकृति का अधिक से अधिक दोहन कर लेना चाहता है।
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
मनुष्य ही प्रकृति के विनाश का कारण बनता जा रहा है। प्रकृति ने मनुष्य का ही नहीं, अपने सभी प्राणियों को सुख और संतोषपूर्वक जीवन बिताने के सभी साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराए हैं। अन्य जीव आज भी प्रकृति से आजभर के लिए साधन पाना चाहते हैं, जबकि मनुष्य आज ही जाने कब तक के लिए साधन आज पाना चाहता है। उसे भले ही सोने के लिए दो गज ज़मीन ज़रूरी हो मगर वह फ़र्लांगों में फैले बंगले का निर्माण करता है। भले ही इसके लिए कितने ही पेड़ क्यों न काटने पड़ें। भले ही इससे प्रकृति के अनंत जीव बेआसरा क्यों न होते हों। भले ही प्रकृति प्रदूषित होती हो, मगर वह यहाँ से वहाँ अन्य प्राणियों की भाँति पाँव-पाँव नहीं, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों में ही जाएगा। उसे इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है कि आने वाली पीढियाँ कहाँ रहेंगी, प्रकृति से कुछ पा सकेंगी या नहीं। वह तो आज ही अपनी विलासिता के लिए, अपनी सनक के लिए, अपनी फ़िजूल खर्ची की आदत के वशीभूत हो प्रकृति का अधिक से अधिक दोहन कर लेना चाहता है।
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Question : 129
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