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Question Numbers: 67-71
निर्देशः निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए-
भारत ने स्वाधीनता प्राप्त करने के बाद अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की है। जब हम स्वतंत्र हुए तो उस समय हमारी स्थिति अच्छी न थी। सरकारी प्रयासों से काफी सुधार हुआ परन्तु अभी भी एक क्षेत्र एसा है जिसमें हम अभी तक कुछ विशेष नहीं कर पाए। वह क्षेत्र है - खेलों का। इससे बड़ी विडंम्बना और क्या हो सकती है कि वर्षों से हम ओलम्पिक में कोई भी स्वर्णपदक नहीं जीत पाए। दुनिया के छोटे-छोटे अविकसित, निर्धन राष्ट्रों के प्रतिभागी भी खेलकूद के क्षेत्र में हमसे आगे निकल गए हैं। कभी हॉकी का विशेष चैंपियन रहने वाला भारत आज इस खेल में अपनी प्रतिष्ठा खो चुका है। खेलों में गिरते स्तर के लिए कौन जिम्मेदार है? एक ओर सरकार की उदासीन दोषपूर्ण सरकारी नीतियाँ हैं तो दूसरी ओर विभिन्न खेल संघों की गुटबाजी, खिलाड़ियों के लिए सुविधाओं एवं प्रशिक्षण का सर्वथा अभाव या कुछ और प्रतिभागिताओं में भाग लेकर खाली हाथ लौटने पर सभी एक दूसरे को दोषी बताते हैं। कारण चाहे जो भी हो इतना तय है कि खेलकूद को राष्ट्रीय सम्मान का पर्याय नहीं मानते। अभाव प्रतियोगिताओं का नहीं, अभाव है तो लगन का, प्रोत्साहन का, संकल्प का और मुँहतोड़ जवाब देने वाले जीवट का।
निर्देशः निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए-
भारत ने स्वाधीनता प्राप्त करने के बाद अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की है। जब हम स्वतंत्र हुए तो उस समय हमारी स्थिति अच्छी न थी। सरकारी प्रयासों से काफी सुधार हुआ परन्तु अभी भी एक क्षेत्र एसा है जिसमें हम अभी तक कुछ विशेष नहीं कर पाए। वह क्षेत्र है - खेलों का। इससे बड़ी विडंम्बना और क्या हो सकती है कि वर्षों से हम ओलम्पिक में कोई भी स्वर्णपदक नहीं जीत पाए। दुनिया के छोटे-छोटे अविकसित, निर्धन राष्ट्रों के प्रतिभागी भी खेलकूद के क्षेत्र में हमसे आगे निकल गए हैं। कभी हॉकी का विशेष चैंपियन रहने वाला भारत आज इस खेल में अपनी प्रतिष्ठा खो चुका है। खेलों में गिरते स्तर के लिए कौन जिम्मेदार है? एक ओर सरकार की उदासीन दोषपूर्ण सरकारी नीतियाँ हैं तो दूसरी ओर विभिन्न खेल संघों की गुटबाजी, खिलाड़ियों के लिए सुविधाओं एवं प्रशिक्षण का सर्वथा अभाव या कुछ और प्रतिभागिताओं में भाग लेकर खाली हाथ लौटने पर सभी एक दूसरे को दोषी बताते हैं। कारण चाहे जो भी हो इतना तय है कि खेलकूद को राष्ट्रीय सम्मान का पर्याय नहीं मानते। अभाव प्रतियोगिताओं का नहीं, अभाव है तो लगन का, प्रोत्साहन का, संकल्प का और मुँहतोड़ जवाब देने वाले जीवट का।
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