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Question Numbers: 67-71
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए -
भारत का गौरव बढ़ानेवाले महानुभावो में रबिन्द्रनाथ टैगोर का स्थान अग्रगण्य है। उनका जीवन सदैव प्रेरणादायी है। उनका जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता के एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ और माता का नाम शारदादेवी था। उनके पिता ब्रह्म समाज के नेता थे। वे महान कवि, कहानीकार, गीतकार , चित्रकार, संगीतकार, नाटककार एवं सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने 8 साल की छोटी उम्र में कविता लिखी थी, काबुलीवाला, मास्टर साहब, पोस्ट मास्टर जैसी अर्थस्पर्शी कहानियां हमें दी है। सन् 1878 में कानून की पढाई के लिए लंदन गए लेकिन साहित्यप्रेमी रबिन्द्रनाथजी 1880 में बिना उपाधि (डिग्री) लिए वापस आ गए। प्रकृति के प्रेमी से रबिन्द्रनाथजी ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। 16 अक्टूबर 1905 को उनके नेतृत्व में कलकत्ता में रक्षाबंधन के उत्सव से बंग-भंग आन्दोलन का आरम्भ हुआ। इसी आन्दोलन से भारत में स्वदेशी आन्दोलन का सूत्रपात हुआ उनकी सबसे लोकप्रिय गीतांजलि रही जिस के लिए 1913 में उन्हें पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 1919 में हुए जलियांवाला हत्याकांड की उन्होंने भरपूर निन्दा की, उनका विरोध इतना तीव्र था कि उन्होंने ‘नाईट हुड’ उपाधि लौटा दी। भारत का राष्ट्रगान जन गण मन एवं बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत ‘आमार सोनार बॉग्ला’ उनकी ही रचना है। सर्वतोमुखी प्रतिभा रखनेवाले रबिन्द्रनाथजी का निधन 7 अगस्त 1941 में कलकत्ता में हुआ। उनका जीवन सदैव पथ प्रदर्शक है।
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए -
भारत का गौरव बढ़ानेवाले महानुभावो में रबिन्द्रनाथ टैगोर का स्थान अग्रगण्य है। उनका जीवन सदैव प्रेरणादायी है। उनका जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता के एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ और माता का नाम शारदादेवी था। उनके पिता ब्रह्म समाज के नेता थे। वे महान कवि, कहानीकार, गीतकार , चित्रकार, संगीतकार, नाटककार एवं सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने 8 साल की छोटी उम्र में कविता लिखी थी, काबुलीवाला, मास्टर साहब, पोस्ट मास्टर जैसी अर्थस्पर्शी कहानियां हमें दी है। सन् 1878 में कानून की पढाई के लिए लंदन गए लेकिन साहित्यप्रेमी रबिन्द्रनाथजी 1880 में बिना उपाधि (डिग्री) लिए वापस आ गए। प्रकृति के प्रेमी से रबिन्द्रनाथजी ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। 16 अक्टूबर 1905 को उनके नेतृत्व में कलकत्ता में रक्षाबंधन के उत्सव से बंग-भंग आन्दोलन का आरम्भ हुआ। इसी आन्दोलन से भारत में स्वदेशी आन्दोलन का सूत्रपात हुआ उनकी सबसे लोकप्रिय गीतांजलि रही जिस के लिए 1913 में उन्हें पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 1919 में हुए जलियांवाला हत्याकांड की उन्होंने भरपूर निन्दा की, उनका विरोध इतना तीव्र था कि उन्होंने ‘नाईट हुड’ उपाधि लौटा दी। भारत का राष्ट्रगान जन गण मन एवं बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत ‘आमार सोनार बॉग्ला’ उनकी ही रचना है। सर्वतोमुखी प्रतिभा रखनेवाले रबिन्द्रनाथजी का निधन 7 अगस्त 1941 में कलकत्ता में हुआ। उनका जीवन सदैव पथ प्रदर्शक है।
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