भारतीय संविधान मूलरूप से परिसंघात्मक (federal) संविधान है परन्तु वास्तविक रूप से यह परिसंघात्मक के साथ-साथ एकात्मक संविधान है क्योंकि संविधान में राज्यों के लिए अलग-अलग संविधान नहीं है। ( अपवाद-जम्मू- कश्मीर) तथा एकल नागरिकता जैसे प्रावधान भारतीय संविधान को एकल संवैधानिकता प्रदान करते हैं। इसलिए विभिन्न संविधान विशेषज्ञों ने इसे अलग-अलग नामों से संबोधित किया है। प्रो. के.सी. व्हीयर ने इसे आंशिक/अर्द्ध परिसंघात्मक (Quari-Fed-eral) कहा है। वहीं ग्रेनविले ऑस्टिन ने इसे 'सहयोगात्मक/सहकारी संघवाद या परिसंघात्मक (Cooper-ative Federalism)' कहा है। सर आइवर जे निंग्स के अनुसार "भारतीय संविधान एक ऐसा संघ है जिसमें केन्द्रीयकरण की सशक्त प्रवृत्ति है।" दुर्गादास (D.D.) बसु ने बहुत ही व्यवहारिक दृष्टिकोण से यह कहा था कि संविधान न तो शुद्ध रूप से परिसंघीय है और न ही शुद्ध रूप से ऐकिक है, किन्तु यह दोनों का संयोजन है तथा यह एक नये प्रकार का संघ या मिश्रित राज्य है। जबकि भारतीय संविधान के पिता डॉ.बी.आर अम्बेडकर के शब्दों में भारतीय संविधान समय और परिस्थिति की मांग के अनुसार, परिसंघात्मक एवं एकात्मक दोनों स्वरूपों को धारण किया हुआ है। नोट-आदर्श रूप से परिसंघात्मक संविधान अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का है। जहाँ राज्यों को इतनी स्वायत्तता है, कि उनके अपने संविधान हैं।