Solution:
भारत में विभिन्न तरह के चट्टान समूह पाये जाते हैं जो निम्न प्रकार वर्णित है:-
(1) प्राचीनतम चट्टाने आर्कियन समूह- ये सर्वाधिक प्राचीन चट्टाने हैं, जिनका निर्माण पृथ्वी से निकले लावा के ठण्डे होने से हुआ है तथा ये प्राथमिक चट्टाने हैं, जो प्रायद्वीपीय भारत के दो-तिहाई भाग पर विस्तृत है। ये चट्टाने रवेदार है तथा इनमें जीवाश्म का अभाव होता है वर्तमान में ये चट्टाने अपने मूल अस्तित्व को खो चुकी है। इनमें ग्रेनाइट, नीस व शिष्ट चट्टानों की प्रधानता है। बुंदेलखण्ड नीस व बेलारी नीस इनमें सबसे प्राचीन है। इनका विस्तार उड़ीसा, छोटानागपुर पठार, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि में है। इनमें धात्विक एवं अधात्विक दोनों खनिजों की प्रधानता है।
(2) धारवाड़ समूह- ये चट्टाने आर्कियन क्रम के चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण ( जीवाश्म रहित ) से बनी परतदार चट्टाने हैं। इनका विस्तार-राजस्थान, मध्य प्रदेश, कश्मीर, कर्नाटक, अरावली श्रेणियाँ एवं छोटानागपुर का पठार आदि क्षेत्रों में है।
( 3) कुडप्पा क्रम की चट्टाने- इनका निर्माण धारवाड़ समूह के अपरदन से हुआ है। इनमें भी जीवाश्म का अभाव मिलता है। इनमें स्लेट, क्वार्टजाइट एवं चूना पत्थर प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।
(4) विंध्य समूह की चट्टाने- इन चट्टानों का निर्माण कुड़प्पा समूह की चट्टानों के बाद समुद्र एवं नदी घाटियों में जल निक्षेपों के एकत्रीकरण से हुआ है, जो कालांतर में परतदार चट्टानों के रूप में रूपांतरित हो गया। इस चट्ट्टानों में चूने का पत्थर, लाल बलुआ पत्थर व चीनी मिट्टी आदि की प्राप्ति होती है।
(5) गोंडवाना क्रम की चट्टाने- इनका निर्माण ऊपरी कार्बोनीफेरस कल्प से जुरसिक कल्प ( पेंजिया के विखण्डन के पूर्व तक) हुआ है। भारत का लगभग 98% कोयला (बिटुमिनस) गोंडवाना क्रम की चट्टानों ( जीवाश्म युक्त) से मिलता है।
(6) दक्कन ट्रैप- इनका निर्माण मेसोजोइक महाकल्प के क्रिटोसियस कल्प में हुआ था। इस समय पश्चिम प्रायद्वीप भारत में ज्वालामुखी उद्भेदन से लावा का वृहद उदगार हुआ (क्योंकि भारतीय महाद्वीप, पेंजिया विखण्डन के बाद उत्तर की तरफ चलने से रियुनियन हॉट स्वॉट के ऊपर से गुजरा था ) तथा 5 लाख वर्ग किमी. के क्षेत्र पर आच्छादित हो गया है। इन्हीं चट्टानों के अपक्षय एवं अपरदन से काली मिट्टी का निर्माण हुआ है। इसका विस्तार गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा तेलंगाना तक विस्तृत है।
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