शंकराचार्य या आदि शंकराचार्य (788-820ई.) भारत में भक्ति आंदोलन के प्रणेता थे इनका जन्म चेर साम्राज्य (केरल) के कलाड़ी गाँव में हुआ था। इन्हें भारत का एकीकरण करने का श्रेय जाता है क्योंकि इन्होंने ही चार हिंदू धार्मिक मठों यथा-दक्षिण के श्रृंगेरी शंकराचार्य पीठ, पूर्व ( ओडिशा ) में जगन्नाथपुरी में गोवर्धनपीठ, पश्चिम द्वारिका में शारदामठ तथा उत्तर बद्रिकाश्रम में ज्योतिपीठ आदि की स्थापना का श्रेय जाता है। शंकराचार्य ने अद्वैताद ( वेदांत दर्शन ) का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार ज्ञान मार्ग द्वारा और निर्गुण ब्रह्म की उपासना ही मोक्ष के लिए जरूरी है कबीर (1398-1510ई.)-में सिकंदर लोदी के समकालीन थे। इनकी शिक्षाएँ बीजक (ग्रंथ ) में संग्रहीत है तथा ये ईश्वर के निराकार और निर्गुण रूप के उपासक थे। रामानंद (15वी शताब्दी), कबीर के गुरु थे, भक्ति आंदोलन को दक्षिण से उत्तर लाने का श्रेय रामानंद को ही दिया जाता है। वास्तव में मध्य युग का धार्मिक आंदोलन रामानंद से आरंभ हुआ। जबकि भक्ति आंदोलन के सबसे महान संत चैतन्य कृष्ण के भक्त थे। इनको बंगाल में आधुनिक वैष्णव वाद (गौड़ीय वैष्णव धर्म) का संस्थापक माना जाता है। भक्ति कवियों में चैतन्य एकमात्र ऐसे कवि थे जिन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध नहीं किया। उनके दार्शनिक सिद्धांत वेदान्त की अद्वैवाद की ही शाखा थी तथा इन्होंने भक्ति में कीर्तन को मुख्य स्थान दिया। चैतन्य ने मध्यगौड़ीय सम्रदाय या अचिन्त्य भेदाभेद सम्रदाय की स्थापना की।