अगर विश्व का तापमान सामान्य ( औसत-15 °C ) से बढ़ जाए, तो ऐसी घटना को ग्लोबल वार्मिग कहते हैं परन्तु औद्योगीकरण के बाद से उद्योगों द्वारा वायुमण्डल में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य गैसों के उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिग की प्रक्रिया तेज हो गई है तथा वायुमण्डल में उत्सर्जित इन गैसों को ग्रीन हाऊस गैसें कहते हैं। जो सूर्य से आने वाली लघु तरंगों को तो पास होने देती है , परन्तु पृथ्वी के पार्थिव विकिरण के कारण उत्सर्जित दीर्घ तरंगों को रोक लेती है, जिससे वातावरण गर्म होने लगता है और अतत: हिमखण्डों का पिघलना शुरू हो जाता है, जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ने लगता है तथा इस कारण अन्य समस्याएँ उत्पन्न होने लगती है। वर्तमान में वायुमण्डल में CO2 की मात्रा 400PPm तक पहुँच गई है, जो औद्योगी- करण से पहले 280PPm थी। वायुमण्डल में सामान्यत: 78% नाइट्रोजन एवं 21% ऑक्सीजन गैसें होती है।