मूर्तिकला एवं चित्रकला ( शिल्पकला ) का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना की भारतीय संस्कृति। मूर्तिकला को तक्षण कला भी कहा जाता है। इसके अंदर विभ्भन्न प्रकार के पाषाणों अथवा धातुओं से मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। प्राचीनकाल से भारत में मूर्तिकला के विकास की प्रवृत्ति प्राय: धार्मिक रही, इसके बावजूद भारत में धर्मनिरपेक्ष मूर्तिकला के अस्तित्व के उदाहरण भी मिलते हैं। भारत में मौर्योत्तर कालीन मूर्तिकला की तीन महान शैलियाँ-गांधार ( उत्तर- पश्चिम भारत से अफगानिस्तान तक), मथुरा तथा अमरावती कला इत्यादि प्रसिद्ध हुई। गांधार शैली पर यूनानी और रोमन प्रभाव परिलक्षित होता है। इसमें पत्थरों को काटकर और काले पत्थर का बहुत उपयोग किया है, जबकि मथुरा शैली में देशी शैली का प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट होता है इसमें लाल बलुआ पत्थर का बहुतायत से प्रयोग किया गया है ( क्योंकि विंध्य पवतों में लाल बुलआ पत्थर प्रमुखता से उपलब्ध है )। अमरावती शैली में मुख्यत: संगमरमर एवं सफेद बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया।