भगवान शिव की प्रसिद्ध नटराज की कांस्य से निर्मित कलाकृति (मूर्ति), चोल कला का विशिष्ट उदाहरण है। प्राचीन आचार्यों के अनुसार शिव के आनंद रूपी तांडव से सृष्टि का सृजन- हुआ है जबकि रौद्र रूपी तांडव से सृष्टि का विनाश होना माना जाता है। शिव के इसी आंनद रूपी नटराज को चोल शासन काल में प्रमुख स्थान दिया गया एवं कई कास्य प्रतिमाएँ बनाई गई। नटराज मूर्ति में चार भुजाएँ बनाई गई हैं, इसे अग्न के चारों ओर से घिरा दिखाया गया है, जिसकी लपटें विनाश का प्रतीक है। मूर्ति में एक मानव संरचना को शिव के एक पाँव से दबा दिखाया गया है। यह बौना मानव अज्ञान का प्रतीक है। अर्थात् शिव अज्ञानता का नाश करते हैं। शिव का दूसरा पाँव नृत्य मुद्रा में ऊपर उठा हुआ है। आदि का पूर्ण वर्णन नटराज की मूर्ति में दिया हुआ है। अर्थात् नटराज की सम्पूर्ण आकृति ओंकार के रूप में दिखायी देती है, इसका अर्थ यह है कि 'ऊँ' शिव में ही निहित है।