संवैधानिक प्रावधानों और स्थापित परंपराओं के अनुसार राष्ट्रपति को 8 वर्ग की शक्तियाँ ( यथा-कार्यपालक, विधायी, न्यायिक/उत्तरदायित्व, वित्तीय, आपातकालीन, सैन्य, कूटनीतिक तथा स्वविवेकी शक्तियाँ) प्राप्त है। संविधान में कहीं भी राष्ट्रपति की स्वविवेकी शक्तियों की चर्चा नहीं की गई है, परंतु राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख है और देश को संविधानिक संकट से बचाने के लिए कुछ विशेष परिस्थितियों में स्वयं तौर पर, जब संवैधानिक प्रावधान स्पष्ट नहीं है, तो कुछ स्वविवेकी शक्तियाँ अर्जित कर लेते हैं। कुछ प्रमुख स्वविवेकी शक्तियाँ निम्न है- 1. प्रधानमंत्री की नियुक्ति में जब आम चुनावों के बाद किसी भी दल को बहुमत नहीं प्राप्त हुआ है, तो राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेकानुसार निर्णय लिया जाता है। 2. मंत्रिपरिषद द्वारा लोक सभा भंग करने की सिफारिश या सलाह (जब केन्द्रीय मंत्रिपरिषद ने अपना बहुमत लोक सभा में खो दिया हो) मानना या न मानना राष्ट्रपति के स्वविवेक पर निर्भर करता है। 3. केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह को पुनर्विचार के लिए लौटाते समय भी राष्ट्रपति अपने स्वविवेक से निर्णय लेता है। 4. संसद को सूचना या संदेश भेजना 5. विधेयक को आपत्तियों सहित वापस भेजना 6. विधेयक को रोककर रखना (अनिश्चित काल तक- जेबी वीटो द्वारा- केवल साधारण और वित्त विधेयक पर ही यह शक्ति प्राप्त है।) जबकि-मंत्रिपरिषद की नियुक्ति एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति- राष्ट्रपति की कार्यपालक शक्ति के अंदर आती है तथा क्षमा प्रदान करना , राष्ट्रपति की न्यायिक शक्ति है बल्कि विधेयकों को आपत्ति सहित वापस भेजना और विधेयक को रोककर रखना तथा संयुक्त अधिवेशन की अधिसूचना जारी करना आदि राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ भी है।