कौटिल्य/चाणक्य या विष्णुगुप्त द्वारा रचित अर्थशास्त्र हिंदू राज शासन के ऊपर प्राचीनतम (मौर्यकालीन ) उपलब्ध रचना है यह मुख्यत: 'राजनीति शास्त्र' से संबंधित है। इस ग्रंथ में 15 अधिकरण एवं 180 प्रकरण है। इस अर्थशास्त्र के अनुसार-दो प्रकार वे न्यायालयों ( धर्मस्थीय न्यायालय और कंटक- शोधन न्यायालय) का उल्लेख है। धर्मस्थीय न्यायालय-नागरिकों के पारस्परिक विवादों का निपटारा करते थे। इन्हें दीवानी अदालत समझा जा सकता है। चोरी, डाके , लूट-पाट के मामले, जिन्हें 'साहस' कहा जाता था, धर्मस्थीय न्यायालय में प्रस्तुत होते थे। कुवचन, मान-हानि, मार-पीट संबंधी मामले, जिन्हें वाक्पपारुष्य' अथवा 'द्ण्डपारूष्य' कहा जाता था, कंट- कशोधन न्यायालय में प्रस्तुत किये जाते थे अथवा कंटकशोधन न्यायालय 'फौजदारी अदालत' थी। व्यावहारिक महामात्र का नगर न्यायाधीश, राजुक (राज्जुक जनपद न्यायाधीश) प्रादेशिक, फौजदारी ( मार-पीट हत्या, चोरी आदि संबंधित मामलों का निपटारा करते थे। मौर्य शासन और न्याय व्यवस्था के अंतर्गत सम्राट सर्वोच्च का अन्तिम न्यायालय एवं न्यायाधीश था तथा ग्राम सभा सबसे छोटी न्यायालय थी।