73 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत पंचायती राज प्रणाली की त्रिस्तरीय प्रणाली अपनाई गई तथा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। इसके द्वारा प्रतिनिधियात्मक (Representative) लोकतंत्र को सहभागी (Participatory) लोकतंत्र में परिवर्तित कर दिया गया है। ● पंचायती राज प्रणाली के तीन स्तर तथा कुछ महत्त्वपूर्ण प्रावधान- ● ग्राम पंचायत- ग्रामीण स्तर पर ● पंचायत समिति या जनपद पंचायत-प्रखण्ड स्तर पर ● जिला परिषद या जिला पंचायत-जिला स्तर पर ● अधिनियम में पंचायती राज प्रणाली के आधार के रूप में ग्राम सभा का प्रावधान है। ● कुछ अनिवार्य प्रावधान- 1. पंचायत के तीनों स्तरों के सभी सदस्यों का चयन जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति से किया जाता है। 2. किसी पंचायत के ग्राम स्तर पर अध्यक्ष का चयन उस विधि से किया जाएगा, जो राज्य विधायिका निर्धारित करे ( यानि यह प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या दोनों का मिश्रण भी हो सकता है-स्वैच्छिकप्रावधान ) 3. मध्यवर्ती तथा जिला स्तर पर अध्यक्ष का चयन इस स्तर के लिए चयनित सदस्यों में से ही अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति द्वारा किया जाता है। 4. किसी ग्राम पंचायत में कम से कम 10 और अधिकतम 20 पंच हो सकते हैं और सभी पंच निर्वाचित होते हैं, कोई भी मनोनीत नहीं हो सकता है। 5. पंचों के निर्वाचन में समान मत आने पर लॉटरी द्वारा निर्णय लिया जाता है। 6. कुछ विशिष्ट क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्यों को ( जैसे-समाजसेवी, कला, विज्ञान साहित्य आदि क्षेत्रों से संबंधित सदस्य) सरपंच, ग्राम पंचायत के लिए मनोनित कर सकता है। ये सदस्य बैठक में तो भाग ले सकते हैं। परंतु मतदान नहीं कर सकते हैं। 7. जनपद पंचायत अध्यक्ष सिर्फ जिला स्तर पर कुछ विशेषज्ञ सदस्यों को ही मनोनीत कर सकता है, न कि पंचों को। 8. पंचायतों के प्रत्येक स्तर पर कुल सीटों का तथा अध्यक्ष पद की कुल संख्या का 1∕3 महिलाओं के लिए आरक्षित है।