विश्व के संविधानों के दो प्रकार होते (लोकतंत्र राज्यों में) है- 1. परिसंघात्मक- राजनैतिक प्रशासनिक आदि दो स्तरों पर कानून बनाने के लिए विद्यायी संस्थाएँ तथा केन्द्र व राज्य के बीच शक्ति का बटवारा बिल्कुल स्पष्ट एवं अलग-अलग होता है। उदाहरण- USA,India etc. 2. एकात्मक- एक ही स्तर पर (केन्द्र के) विद्यायी संस्था जहाँ से पूरे देश के लिए कानून बनता है, परन्तु प्रशासन की सरलता व सहजता के लिए कई स्तरों पर प्रशासनिक इकाईयाँ गठित की जाती है। उदाहरण- श्रीलंका एवं UK का संविधान आदि। भारतीय संविधान मूलभूत रूप से एक परिसंघात्मक संविधान है, परन्तु संविधान विशेषज्ञ इसे पूरी तरह से परिसंघात्मक की श्रेणी में नहीं रखते हैं। भारतीय संविधान में कुछ ऐसे प्रावधान है, जहाँ कुछ शक्तियाँ केन्द्र की तरफ ज्यादा झुकी है अर्थात् भारतीय संविधान में एकात्मक संविधान के भी कुछ तत्त्व गुण है जो निम्न है- 1. राज्यपालों की नियुक्ति, राज्य सभा में राज्यों का असमान नेतृत्व तथा अखिल भारतीय सेवाएँ आदि। 2. ज्यादा और सभी महत्त्वपूर्ण विषय केन्द्र को आवंटित। 3. अवशिष्ट विषयों पर कानून बनाने की शक्ति केन्द्र (संसद) के पास निहित है। 4. अनुच्छेद −217,249,250,252,253 एवं 356 वेर अन्तर्गत उन विशेष परिस्थितियों का उल्लेख है, जिन पर केन्द्र, राज्य सूची के विषयों पर भी विधान बना सकता है। 5. एकल नागरिकता आदि। नोट- भारतीय संविधान को सहयोगात्मक या आंशिक/अर्द्ध परिसंघात्मक संविधान कहना सबसे उचित है।