भारत के राष्ट्रपति को विधायी शक्तियों के तहत कुछ विषयों पर वीटो शक्ति प्राप्त है। देश की विधायी प्रक्रिया में दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक, अधिनियम तभी बन सकता है, जब राष्ट्रपति इसे अपनी स्वीकृति या सहमति दे दे। इसके विरोध स्वरूप भारतीय राष्ट्रपति को कुछ वीटो शक्तियाँ प्राप्त है, जिसमें से जेबी वीटो (Pocket Veto)- के अनुसार, विधेयक को स्वीकृति देने में अनिश्चितकालीन विलम्ब करना, चूँकि संविधान में उस समयावधि या समय सीमा की चर्चा नहीं की गई है, जिसके उपरांत राष्ट्रपति को विधेयकों पर स्वीकृति प्रदान करना है। अतः राष्ट्रपति को विधेयक को स्वीकृति देने में अनिश्चित-कालीन विलम्ब करने की शक्ति है। सन् 1986 में राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिसह द्वारा भारतीय डाक (संशोधन) अधिनियम के संदर्भ में इस वीटो का प्रयोग किया था। राजीव गाँधी सरकार द्वारा पारित विधेयक ने प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए और इसकी अत्याधिक आलोचना हुई। तीन वर्ष पश्चात् 1989 में अगले राष्ट्रपति आर. वेकंटरमन ने यह विधेयक नई राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के पास पुनर्विचार के लिए भेजा, परंतु सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला लिया। नोट- भारतीय राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक एवं धन विधेयक पर कोई भी वीटो शक्ति नहीं प्राप्त है।