समाधि समयातित है, जिसे मोक्ष कहा जाता है। इस मोक्ष को ही जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान और बौद्ध धर्म में निर्वाण कहा गया है तथा योग में इसे समाधि कहा गया है। इसके कई स्तर होते हैं, अंतिम स्तर ब्रह्मलीन हो जाना है। मोक्ष एक ऐसी दशा है , जिसे मनोदशा नहीं कहा जा सकता है। समाधि मरण , मृत्यु और मानव के बीच संबंध होता है, जिसे जैन धर्म में सल्लेखना या संथारा कहा जाता है, जो मृत्यु के निकट जाकर अपनायी जाने वाली प्रथा है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है। इस जैन ग्रंथ के तत्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय के 22वें श्लोक में लिखा गया है। दिगम्बर जैन शास्त्र में इसे समाधि या सल्लेखना जबकि श्वेताम्बर साधना पद्धति में इसे संथारा कहा जाता है। सल्लेखना का (सत् + लेखना) अर्थ है, कि सम्यक प्रकार से काया और कषायों को कमजोर करना। यह श्रावक और मुनि दोनों के लिए बताई गई है तथा इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सब कुछ त्याग देता है।