छत्तीसगढ़ में बस्तर अंचल में हल्बी भाषा में गाए जाने वाले 'जगार गीत' या 'धनकुल गीत' गायन की परम्परा है। धनकुल नामक तत् वाद्य की संगत में गाये जाने के कारण इसे 'धनकुल गीत' भी कहा जाता है और चूँक धनकुल वाद्य का वादन विभिन्न 4 जगारों के गायन के समय होता है, इसलिए इन गीतों को 'जगार गीत' भी कहा जाता है। जगार वाचिक परम्परा के सहारे पीढ़ी-दर-पीढ़ी मुखान्तरित होते आ रहे लोक महाकाव्य हैं। ये लोक महाकाव्य है- आठे जगार, तीजा जगार ( धनकुल ), लक्ष्मी जगार तथा बाली जगार। धनकुल नामक इस तत् वाद्य का वादन प्राय : दो जगार गायिकाएँ करती है। इन जगार गायिकाओं को गुरुमाय कहा जाता है। धनकुल वाद्य हाँडी, सूपा और धनुष के संयोजन से तैयार लोक वाद्य है, इसमें बाँस की खपच्ची का भी प्रयोग किया जाता है।