यह मूलत: एक गाथा गायन है, जिसमें गायक, रागी और वादक होते हैं। इसमें मोटे बाँस के लगभग एक मीटर लम्बे सजे-धजे बाँस से बने वाद्य का प्रयोग होता है। इसी कारण इसे बाँस गीत कहा जाता है , छत्तीसगढ़ में इसे प्राय: राऊत जाति के लोग गाते हैं तथा इसके माध्यम से करुण गाथा गायी जाती है । बाँस गीत की कथाओं में सिल बसंत, मोरध्वज, कर्ण कथा आदि है। बासीन गाँव के कैजूराम यादव, खैरागढ़ के नकुल बाँस गीत के श्रेष्ठ गायकों में से हैं।