स्विस मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे को रचनात्मकतावाद के प्रारंभिक उन्नायकों (समर्थकों) में से एक माना जाता है। पियाजे का ज्ञान-मीमांसा के क्षेत्र में संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत आज के अधिगम एवं बाल विकास के सिद्धांतों को अत्यंत प्रभावित किया है। पियाजे के अनुसार, ज्ञान प्राप्ति के लिए बच्चों की योग्यताएं उस तथ्य के लिए जिम्मेदार हैं कि वे परिस्थिति के अनुकूलन की क्षमता के साथ पैदा हुए हैं। यह अनुकूलन दो विधियों के माध्यम से अर्जित किया जाता है : आत्मसात्करण और निभाव। पियाजे के विचार कई अनुदेशात्मक मॉडल को आधार प्रदान करते हैं। शैक्षणिक दृष्टि से, पियाजे के सिद्धांत का अर्थ है कि बच्चे जिस वातावरण में रहते हैं वहीं पारस्परिक वार्तालाप द्वारा स्वाभाविक रूप से सीखते हैं, न कि शिक्षक द्वारा दिए गए ज्ञान के माध्यम से।